Thursday, November 13, 2014

आइना ऐ जिन्दगी


फिर से मुक्तसर  हुई अंधियारी,
गुलाबी कलियों ने ली अंगड़ाई,
सूरज पूर्व से परिलक्षित हुआ,
सवेरा हो गया मेरे  भाई ||

वक़्त रुकता नही कभी मुड़ के देखो तो,
धुआं है सराबोर,
आफतों और भागमभाग में,
अपने कायनात के लिए मुहरें जुटाता हूँ,
पीछे मुड़ उस धुंए का इंतजार करता हूँ ||

न  मिले मिट्टी जिसे शान ए हिन्दुस्तान की,
तकल्लुफ  मरना भी जीने से बेहतर है,
कह गए वतन के शेर ए शहीद,
मिट्टी तेरा कर्ज न चुका पाउँगा ||

शाम आती है तमन्ना लेकर,
तेरी मुलाकात से त्वाज्जुब है,
सरे राह फिरते तेरी आरजू लिए,
गम के बदल भी घिर आते है आँधियों संग,
फिर भी मुमकिन खड़े है तेरे इंतजार में ||

खतों से बनती नहीं बात,
तन्हाई के आलम में,
गुजरते है फूलों से फिर भी,
बंजर रेगिस्तान लगता है ||

रात है वीरानी अभी है,
शायर हैं हम,
ये लम्हे जवां है,
महफिलें सजे या न सही,
इन लम्हों में हंसी सपने जवां है ||

लुहारों की बस्ती में,
सोने नहीं बिकते दोस्त,
फिर हम तो हीरे हैं,
जिसकी चमक भी न देखी हो,
उसने कभी ||

तू ही दिलकश है हमारी नजरों में,
कभी जमीं पे उतर ऐ नजमी,
तेरे हर सपनों को हकीकत कर दूंगा,
ये वादा रहा ||

आज भी अधूरी है ये शाम हमारी,
उलझनों से गुजर मंजिल की आस में,
कह गये वो हमसे,
जीना इसी का नाम है ||

कल होगी फिर से रोशन ऐ दुनिया,
आपकी यादों में फिर तोड़ेंगे चाँदनी,
गर सच्चा है प्यार हमारा,
दिख जायेंगे सितारों में कहीं ||

ऐ बारिश,
तुझ से एक गुजारिश है,
मेरी सितम में कोई न है रोने वाला,
तू कुछ देर और ठहर ||
 
अधूरी अधूरी सी है ये दास्ताँ ने मोहब्बत,
लव तेज न सहीं पर देर तक जलती है ||

नवाबियत तो अस्क बन ढह जाएगी,
एक किताब बन सिमट जाएगी,
कभी खुद को आईने में देख ऐ नवाब,
तेरी फितरत की तर्ज तेरी दुनिया भी मिट जाएगी ||

अगर इकरार न करो,
तो अहसान भी न करना,
काँटों पे चल फ़क़ीर सहीं,
हम जिन्दगी तो जी ही लेंगे ||

कभी माझी बन नाव की सेज थामता,
आज मेरे अपने ही मंजिल चले जा रहे है ||

जाने कौन मुकद्दर से सिकंदर गुजरता है,
खड़े है हम कोशिशों की किताब लेकर ||

"श्री"