Monday, February 22, 2016

पडाव#शेर

गुलजार होगी
सुबह फिर
तुम्हारी यादों के साथ
एक पल साथ जी लो
वजह साफ़ होगी
जीने के लिए आज ।।

मेरे अरमानो का यही फलसफा होगा ।।
ता उम्र यादें इन्तजारे इंतजा होगा ।।

कुछ गुस्ताखियाँ अनजाने,
वो कर लिया करते हैं ।।
मोहब्बत इसी से हम,
उम्र भर कर लिया करते हैं ।।

जब मिलते हो तो लम्हा सा लगता है
आज महसूस हुआ की जमाना बदल गया।।

जाओ तुम बिन जी लेंगे
बिन साँस ही रह लेंगे
जो लम्हें साथ गुजारे
उनकी माला पिरो लेंगे ।।

इन्तजार में आप की ,रो लिए दो बूंद भर
जब मुलाक़ात हो, कीमत वसूल लेंगे ।।

कभी फुर्सत में देख कर मुस्कुरा लिया करो,
थोड़ी खुशियाँ दिन की थकां मिटा देती है ।।

तेरी तस्वीर आज मेरा आइना होंगी ,
शायद उन्ही आँखों से तुम्हे निहार लेंगे ।।

Wednesday, February 17, 2016

भारत

आज तुम अपने देश में हो,
पर लगता थोड़े द्वेष में हो,
अफजल को तिलक लगाते हो,
अपने घर में आग लगाते हो ।।

जब कतरा कतरा भू में,
वो इंसान पुकारता है,
तुम भारत माँ की छाती पे,
पाकिस्तान बुलाते हो ।।

जिस देश में सारे सपने देख,
तुम सपेरे बन जाते हो,
और गैर देश के झंडे पर,
अपना अधिकार जताते हो।।

कभी सोंचों इस धरती में,
क्या बिन खाए एक दिन सोये,
माँ भारत का अपमान किया,
क्या अपनी माँ को पूजोगे ।।

काश की हृदय तुम्हारा भी,
देश के शहीदों पर रोए,
काश की अफज़ल की गोली,
तेरे अपनों से गुजरे।।

शायद की कलम तुमने,
दूजी ऒर चलायी है,
जिस थाली में खाना खाया,
थाली को ठोकर मारी है ।।

तुम अफज़ल हर घर पैदा करो,
हम हर उस घर को तोड़ेंगे ,
चाहे इस बलिदान में ,
कुछ अपनों को खो देंगे ।।

एक दिन फिर ऐसा आएगा ,
तुम अपनों को जानोगे ,
देश के उन गद्दारों को ,
अफज़ल के संग पाओगे ।।

भारत भूमि अपनी है ,
तुम इसकी संतान हो ,
शायद फिर आज तुम ,
इस बात से फिर अनजान हो ।।
इस बात से फिर अनजान हो ।।

"श्री"
Poem written for JNU University Students Delhi

Saturday, February 13, 2016

Valentine's day अरदास

निशा की ये करवट,
आज फिर मीठी यादें,
दोहराती है ।।
तुम ही रहोगे,
कल भी आज भी ,
ये अंजाम चाहता हूँ ।।
न दौलत न खुदा चाहता हूँ ।।
तुझ में अरदास मांगता हूँ ।।

बिखर गयी,
वो गुलाब की पंखुडियां,
तेरे वजूद का
अहसास देती,
न खुदा न इबादत चाहता हूँ ।।
तुझमे तुझे चाहता हूँ ।।

फिर भी तुमसा,
ये जहाँ लगता है,
न परवाह
जमाने की ,
मै वो शामें ,
दोहराना चाहता हूँ ।।
तेरी कस्ती का,
पतवार होना चाहता हूँ ।।

तेरी बेबसी थी,
या जमाने का भ्रम,
आज उन यादों को,
सजा रहा हूँ ,
मै फिर से ,
तेरी यादों में तुझको,
पाना चाहता हूँ ।।
मै तुझको अपना,
रब बनाना चाहता हूँ ।।
श्री