आलोकिक
इस छाया से क्यों डरता हूँ,
इन रंगों से क्यों बचता हूँ,
इन रंगों से क्यों बचता हूँ,
श्रिष्टि के इस कलरव मे क्यों,
अग्नि सा मै जलता हूँ ||
ये धूमिल निशा जब करवट ले,
फिर लौहः वृत्त सा जीव दिखे ,
इस लौहः वृत्त के सिने सी क्यों,
कसक मै मन मे रखता हूँ ||
घनघोर अन्धेरा विकट खडा,
मै नित दिन खुद से लडता हूँ,
खुद कि अपनी इस छाया से,
खुद कि अपनी इस छाया से,
मै लय कि वीणा सृजता हूँ ||
श्रीकुमार गुप्ता
श्रीकुमार गुप्ता
अच्छी भाव पूर्ण रचना
ReplyDeleteBehad sundar rachana!
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