ख्वाहिश आज मुमकिन है,
संजीवनी समय लेकर
वक़्त ठहरा गया।
जहाज़ भी चाँद पर मिल गया ।
मुस्तक़िल की तुमभी
कायनात की अधूरी कहानी
हम भी विक्रम से
निहार रहे अपने चाँद को
मोहब्बत में
बस उम्मीद की
तुम साथ दोगी
निभाओगी
उन कसमों को हमारी
आज हम भी चन्द्रयान से
अकेले हैं तुम्हारी आवाज़
सुनने को बेकरार
तुम भी उस चाँद सी
सख्त न रहो
बहुत दूर चलें आए हैं
अपनी सरज़मीं छोड़कर
कुछ तो इजहार करो
कुछ दिन की जिंदगी बच गयी
थोड़ा जी लेने दो
मुझे तुम्हारी जमीन
में थोड़ा टहल लेने दो ।।
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