अंधकार , मन को चोट देता है | हर समय नई सोंच और जिन्दगी जीने का अहसास ख़त्म कर देता है | जिन्दगी बस रेल की पटरी पर दौड़ती है | आज का युग इस बात का साक्षी है | हर पल केवल भविष्य की चिंता वर्तमान का कोई ठिकाना नहीं बस भविष्य शानदार हो | इन हालात को देखकर मन में ये भाव उठते है ............
"अंधकार"
एक सजा बन गयी है जिन्दगी ,
कौन सा इतिहास हम ,
न हमारा वर्तमान पे आधिकार ,
टूटी शाख सी बस जल रही है जिन्दगी ......
कम नहीं है दर्द ,
बस दर्द का ख्याल नहीं रहता |
आँसू बहते है ,
आँसुओं का आहसास नहीं रहता |
कहता हूँ खुश हूँ पर ,
ख़ुशी का अहसास नहीं रहता |
समय नहीं है जीवन में ,
जीने का कोई अहसास नहीं होता |
खबर आती है ,
खुशियों के आने का |
ख़ुशी मनाने का ,
इन्तजार नहीं रहता |
बहुत कमाते है दौलत ,
प्यार कमाने का जमाना नहीं मिलता |
एक नाव पे सवार है ,
अपनी मंजिल का इन्तजार नहीं रहता |
खूब लुटाते है अपनी दौलत ,
प्यार लुटाने का बहाना नहीं मिलता |
कहते है सात जन्म साथ जियेंगे ,
सात कदम चलने का विश्वास नहीं रहता |
- श्रीकुमार गुप्ता