Thursday, May 20, 2010

A Drinker's Eye#17


इस प्रस्तुति में एक शराबी मधुशाला में बैठ साकी से अपनी गुजरी जिन्दगी बयां कर रहा है | अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी आस्था दर्शाता है | अपनी प्रेमिका के चले जाने के बाद
"काश कहीं तुम मिल ....."


टूट गये वो कसमें साकी ,
छुट गये वो रिस्ते साकी |

क्रुन्दन की एक नंत स्वप्न में ,
डूब गया वो जीवन साकी |

झोकें से कर करुण वंदना ,
सेज सकून कर जीवन साकी |

जाने कैसे रक्त नीर से ,
खेल रहा हो जीवन साकी |

तेज राह पर थामे श्रृष्टि ,
क्यों करती वो  विचलित साकी |

गलियारों की एक छोर पर ,
जाने क्यों है दृष्टि साकी |

आसमान की थामे बाहें ,
क्यों है आँखे क्रोसित साकी |

6 comments:

  1. गलियारों की एक छोर पर ,
    जाने क्यों है दृष्टि साकी |
    Kabhi na khatm honewale intezaar kee ghadiyan!

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  2. शायद उससे यह भी कहता होगा..
    ऐसा तो मत कर तूं साकी,
    जीवन अभी बहुत है बाकि ....

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  3. khubsurat rachna....
    yun hi likhte rahein
    mere blog par...
    तुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  4. बहुत अच्छा लिखा है ... हिन्दी में लिखे कुछ शेर बहुत कमाल के हैं ....

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