ऐ राही मत पूछ किस ओर जाना है ||
ये रुख है जिन्दगी का ,
बस चलते जाना है ,
कभी आन्धि आये ,
या कभी तूफान ,
कहीं है मन्जिल ,
तो कहीं कब्रिस्तान ,
तू मुसाफ़िर है ,
जिन्दगी सफ़र है ,
बस सफ़र के अन्त तक मन्जिल पा जाना है ||
ऐ राही मत पूछ किस ओर जाना है ||
तकदीर पर बस हक नही किसी का ,
तकदीर भरोसे किसे क्या पाना है ,
जीना सभी को है बस हिम्मत चाहिये ,
वर्ना ऐसे जिन्दगी से तो बेहतर मर जाना है ,
तुम तो कठपुतली हो मुसाफ़िर् ,
तुम्हे किसी और के इसारे समझ जाना है |
ऐ राही मत पूछ किस ओर जाना है ||
बस तकदीर नही हौसला भी चाहिये ,
जिन्दगी तो उसने दे दी, जीने का हौसला भी चाहिये ,
कभी कठनाइयो ने गर् पैर पसार लिये ,
तो इन कदमो को, नही लडखडाना है ,
बस चाह चाहिये, मन्जिल साफ़् नजर आयेगी ,
वर्ना केवल, मृगतृष्णा कि प्यास नजर आयेगी ,
ऐ राही मत पूछ किस ओर जाना है ||
हौसला रख, किसी को भरोसा है तुझ पर ,
तेरी मेहनत एक दिन जरुर रंग लायेगी ,
सफ़र् लम्बा है, सब कुछ सहते जाना है ,
जिन्दगी को जिन्दादिली से जीते जाना है |
ऐ राही मत पूछ किस ओर जाना है ||
श्रीकुमार गुप्ता
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