पल दो पल कि, गुमसुम यादें
कुछ अनजाने ,कुछ पहचाने
आँखों कि सुन्दर दृष्टि
फलकों कि आभा संग बिखरी ||
जाने क्यों है मचलता रे मन ||
जाने क्यों है मचलता रे मन || {1}
निःस्वार्थ , निर्लभ् , निरुपम , नित्य
अविरल , अपलक , अनन्त , अनिल
जाने क्यों है आकर्ष रे मन
जाने क्यों है मचलता रे मन ||
जाने क्यों है मचलता रे मन || {2}
यादों कि वो सुन्दर क्यारी ,रँग भी रँगे फूलों वाली
जाने क्यो है सिंचित रे मन , जाने क्यो है सिंचित रे मन
जाने क्या है आज हृदय में ,आँखों के अनमोल पलक में
दो मोती जो सागर के से ,निकल आये हो मन मन्थन से
जाने क्यों है विचलित रे मन
जाने क्यों है मचलता रे मन ||
जाने क्यों है मचलता रे मन|| {3}
फिर भी कहता साथ है तेरे ,साथ है तेरे, याद में तेरे
उसे कौन ले सकता रे मन ,उसे कौन ले सकता रे मन
साथ दिया था , साथी बनकर ,अपना कहा उसे रिस्ता देके
दिया बुझ गया आज हृदय से ,लेकिन क्यों है जलता रे मन ||
लेकिन क्यों है जलता रे मन ||
जाने क्यों है मचलता रे मन ||
जाने क्यों है मचलता रे मन|| {4}
sundar
ReplyDeleteखुबसुरत भाव है। आभार।
ReplyDeleteजाने क्या है आज हृदय में ,आँखों के अनमोल पलक में
ReplyDeleteदो मोती जो सागर के से ,निकल आये हो मन मन्थन से
जाने क्यों है विचलित रे मन ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ... धरा प्रवाह संगीतमय रचना है ... लाजवाब ....