Wednesday, July 10, 2019

गजल ए तकरीर41

अब मुमकिन नही फिर भी अल्फ़ाज़ कह जाता हूं ।।

गजल ए तकरीर

ए जिंदगी  ए पीर मुझे मेरा मौला दे दे ,

गुजरा वक़्त का किरदार नया सा दे दे ,

तेरे जन्नत का नही शौक कबूल मुझको ,

मुझे किरदार मेरा इश्क पुराना दे दे ।।

वक़्त की धूप में होती है ताकत नई,

मुझे मेरी शौक की दौलत दे दे,

अधूरा इश्क रह गया था प्याला बन कर,

उस प्याले को अधूरा ही पी लेने दे ।।

फिर कुछ देर गुनगुनाने दे ,

उनके चेहरे पे फिर खो जाने दे ,

मयस्सर नही मुझे जमाना खारिज,

इस जमाने में फिर दौर पुराना दे दे ।।

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