Monday, July 8, 2019

नसीहत 42

क्यों याद आ जाती हो
किस्मत के थपेड़ों को
फिर घर कर जाती हो
अंधेरी गलियारों को

राहें तब भी अलग थी
आज भी अलग ही हैं
इन राहों में राहें
क्यों तलाशती हो आखिर

मंजर अलग थे अलग हैं
अलग हो गए शायद
मंजिल एक थी एक है
और एक रह रह गयी आखिर

दुनिया लकीरों की
मोहताज थी
जो आज हकीकत
हो गयी आखिर

तलाश तुम्हारी थी आज भी है
पूरी हो न पाएगी
अधूरा इश्क था अधूरा है
अधूरा रह गया आखिर च

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