Wednesday, March 25, 2015

मौसम है शायराना

धुंधली धुंधली हो चली अपनी मोहब्बत की कस्ती
वक्त पूछता है मरहम किसके थे और घाव किसके


मोहब्बत न सही मेरी मौत बेहतर हो
शायद मेरी तकलीफ से तुझे चैन आ जाये


तुझ से मिलना मुकम्मल न सहीं
पर तुझ से जुडी हर यादें
मेरे अतीत को सजदा करती है
सूख गयी वो गुलाब की कली
जिनमे तेरे प्यार की कसक आज भी है

अश्क तुझ से ज्यादा
हमने बहाए हैं दोस्त
शायद वक्त के थपेड़ों में
अपनी मजिल की तलाश में
तुमने उन्हें न देखा


तलाश गर वफा की करती हो,
मै अधूरा सा पन्ने तेरे मोहब्बत के,
जला आया हूँ ,
इसे मेरी मोहब्बत का सिला ही कहलो,
आज उसी राख से ,
गंगा में तेरा नाम बहा आया हूँ ||


कारवां है की थमता नही
आज हम गुलजार हो चले
आसन सा सफर कठिन हो चला
बस तकलीफ है की
सफर में तेरा साथ नही 

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