सब कुछ है बस राम नही है,
है मन मे बढ़ता अभिमान, 
बदलाव से क्यों संज्ञान ,
मूर्ख बने वाचाल जन्मों से,
बस नारा रह गए राम ।।
भूमि मर्यादा भूल चला, 
हर कोई है अनजान, 
रावण सा है अभिमान,
नारी के लिए नही सम्मान ,
बस नाम ही राम 
न बड़ों का सम्मान ।।
वो धर्म धरा थी ,
राम अर्थ था ,
सीता वचन थी ,
हनुमान ज्ञान थे , 
अंगद शक्ति थी ।।
भरत भाई थे,
सुग्रीव मित्र थे,
वचनों से था, 
हर धर्म महान,
बस राम ही राम 
हर कंठ में राम ।।
शबरी के जूठे बेरों में 
वो मिठास थी 
जो आज नही है 
पत्थर से सागर तर जाए 
वचनों में जज्बात नही है 
कलयुग में इतिहास ढूंढते 
साक्ष्यों में विश्वास नही है ।।
बस नारा रह गए राम ।।
इतिहास का भारत 
भरत का भारत 
अयोध्या में आवास नही है 
लड़खड़ाते युगों से धरती 
नेताओं में विश्वास नही है ।।
बस नारा रह गए राम ।।
"श्री"
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