जीवन संगिनी,
क्या छुपा है तुमसे,
मेरी हर मंजिल अनवरत तेरी काया,
तुम बिन जीवन सुना है,
सरल सा जीवन कठिन हो चला ||
जीवनसंगिनी,
तुम बिन सब सुना,
पुष्प भी काँटों से लगते,
कलियाँ कठोर होती,
मन को कचोटती,
विरह के गीत,
सरोवर की मंद वेग में,
घिर आये मेघ से वंदन
हे मेघ,
कालिदास की विरह,
मेघ दूत बन,
जीवनसंगिनी को,
मेरे कुशल होने का ,
आभास दो,
विरह वेला में जलते,
मन में खलीपन लिए,
तेरी कामना में,
तेरे इंतजार में,
बस तुम्हारा.....
"श्री"
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