कैसी चली तेरे बिन रे फगुनिया ......
सांझ दुवारे की बिजली
हा तरसत हैं ,
देखत रद्दा
संग नयन भटकत है ।
कोयल के कुहू ले मिठ्ठ
तोर बोली के गीत
गुनगुनावत हो ।
का बताएं के दुनिया .....
कभी सपनों का महल ,तो कभी आंसुओं की फरियाद है | कभी रेत की ढेर सी खामोश ,तो कभी पेड की छाँव है ये जिंदगी || कभी गीता की पाठ ,तो कभी कुरान की आयात है | एक कारवाँ सपनों का बागबाँ ,तो कभी माझी की नैया और पतवार है ये जिंदगी || कभी काँटों का दामन , कभी जश्ने बहार है| शांति की वीणा ,तो कभी लहू की ललकार एक आवाज़ है ये जिंदगी || कभी ममता की छाँव कहीं ,तो कभी करुणा की तस्वीर है | आने वाले जीवन की, अनुभवों की गीत है ये जिंदगी || -श्रीकुमार गुप्ता
ख्वाब की परी
यूँ ही हम अक्सर ,
एक ख्वाब से ,
मंजिल की तलाश में
एक नाव से
अधूरे अधूरे अहसास से
अधूरे अधूरे कहानीकार से
एक मंच दो कलाकार से
कहानी के अलग किरदार से
थकान में , जरूरत में
पास पास से ,
उजियारी अंधियारी दुनिया में
साथ साथ से
नदी में किनारों में
साथ साथ से
एक दुआ एक अहसास में
साथ साथ से