Tuesday, July 25, 2023

शब्द बोध

भावनाओं को दस्तक देता 
सूर्य पहरा दे रहा 
डूबते सूर्य का आशीष लिए 
ठिठुरती शीत का आँचल लिए 
फिर मौन शब्दों से 
परिभाषित वाचाल खड़े 

बस अपने कदमों को 
फिर बढ़ाते 
कुछ कबीर कुछ मीरा बन 
कुछ रति के रस गीत सुनाते
मन के वियोग में नूपुरीत धुन 
ऋतू सा सृजन अपूरक 
अनंत हृदय का वाचाल भाव  

कुछ धुन विस्तारित 
जीवनतरंग 
जीवन विधुता सी धारा में 
नव ओज की अंतिम ओस 
परिभाषित करते शब्द मौन 
मौन भाव वाचाल स्वर 

मन का वेग मन से विराम 
फिर भी अधिकार
जताता है ,
तेरी हृदय तरंग वेग
प्रलाप क्रोध उत्साह प्रताप
का पल पल बीजक प्रखर हूं 

तुम कश्ती की सवारी नहीं 
हम जन्म आजन्म संगिनी हो ,
किसी मर्यादा का बोध हुआ 
कब स्वप्न बोध , विराम हुआ 
अब बचा हुआ तनमन
हर पल जीवन तुमसे है 

अब आशक्त नही वरदान तुम्ही 
तुम गीत नही तुम शब्द हो 
मेरी जीवन का करुण स्वर 
तुम हो स्वप्न तुम ही यश हो ।
तुम अल्प नही हो पूर्ण विराम 
तुम बिन न होता एक काम