भावनाओं को दस्तक देता
सूर्य पहरा दे रहा
डूबते सूर्य का आशीष लिए
ठिठुरती शीत का आँचल लिए
फिर मौन शब्दों से
परिभाषित वाचाल खड़े
बस अपने कदमों को
फिर बढ़ाते
कुछ कबीर कुछ मीरा बन
कुछ रति के रस गीत सुनाते
मन के वियोग में नूपुरीत धुन
ऋतू सा सृजन अपूरक
अनंत हृदय का वाचाल भाव
कुछ धुन विस्तारित
जीवनतरंग
जीवन विधुता सी धारा में
नव ओज की अंतिम ओस
परिभाषित करते शब्द मौन
मौन भाव वाचाल स्वर
मन का वेग मन से विराम
फिर भी अधिकार
जताता है ,
तेरी हृदय तरंग वेग
प्रलाप क्रोध उत्साह प्रताप
का पल पल बीजक प्रखर हूं
तुम कश्ती की सवारी नहीं
हम जन्म आजन्म संगिनी हो ,
किसी मर्यादा का बोध हुआ
कब स्वप्न बोध , विराम हुआ
अब बचा हुआ तनमन
हर पल जीवन तुमसे है
अब आशक्त नही वरदान तुम्ही
तुम गीत नही तुम शब्द हो
मेरी जीवन का करुण स्वर
तुम हो स्वप्न तुम ही यश हो ।
तुम अल्प नही हो पूर्ण विराम
तुम बिन न होता एक काम
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