भींगी बरसात में चाँद को निहारते ,
फिर बारिश और झील का किनारा ,
कितना मधुर था वो रेस्टोरेंट का गाना ,
आज फिर घटा है सावन की ,
चलो बड़ी झील पे गुनगुना लेते हैं ,
कुछ आराम के पल इस जद्दोजहद,
की जिंदगी में फरमा लेते हैं ,
जब ये पल न होंगे तो ,
फिर शायराना कल याद करेंगे ,
जब कुछ पल मिल जाएंगे तो ,
फिर जिंदगी आबाद करेंगे ,
फिर आने की फरियाद ,
तुम्हे याद करेंगे ।।
श्री
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