शायद कभी .............
शायद कभी वो पल ना आता,
जीवन का वो कल ना आता,
रुला रुला मरहम न भरता ,
दिल मे मेरे गम ना भरता ।
जिंदगी जन्नत वो करके ,
जिंदगी से आ लडी थी,
मुझ को तो लगता था जैसे ,
जन्मों कि बिछ्डी मिली थी |
बातों मे खोया हुआ ,
लगता था कोई अपनी मिली थी,
लगता था जादुई छडी थी ,
दिल मे मेरी आ पडी थी |
आँसुओं कि वो लडी थी ,
जाने कैसी वो घडी थी,
बात करना भूल कर वो,
देख कर भी चुप खडी थी |
दिल मे तो गम का था साया,
आंखो मे शर्मिंदगी थी,
लगता था मेरे लिए वो,
अंबर तल पर आ खडी थी |
पल दो पल कि खुशियाँ देकर,
जाने क्यो गुमशुम खडी थी,
जिंदगी जन्नत वो करके ,
जिंदगी से आ लडी थी |
भूल कर रिश्ते वो नाते,
पत्थरों सी वो खडी थी,
जाने कैसी वो घडी थी ,
रुठ कर बिछ्डी चली थी ।
"श्री"
nice .............
ReplyDeletekhubsurat lekhni..achha laga.........badhai ho.
ReplyDeletesundar rachna!
ReplyDeleteNihayat khoobsoorat rachana !
ReplyDeletevery good
ReplyDeleteआप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नए लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है। एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
चूप नही....चुप
ReplyDeletemuje jo lines sabse jyada achhe lagi wo hain....शायद कभी वो पल ना आता, जीवन का वो कल ना आता |
ReplyDeleteरुला रुला मरहम न भरता , दिल मे मेरे गम ना भरता |