Tuesday, April 6, 2010

कौन यहाँ जिन्दा रहता है.........................

कौन यहाँ जिन्दा रहता है.........................

कौन होता है किसी का दुश्मन ,
कम्बख्त दोस्त ही दगा देता है |

क्या पाओगे किसी का खून करके ,
कम्बख्त खून ही आंसू देता है |

चीर दूँ दुनिया तेरे प्यार के लिए ,
कमबख्त दिल ही दगा देता है |

वो तो मौत ही ठुकराती है हमें ,
वरना कौन यहाँ जिन्दा रहता है |

2 comments:

  1. कभी सपनो कि महल , तो कभी आंसुओं कि फरियाद है | कभी रेत कि ढेर सी खामोश ,तो कभी पेड कि छाव है ये जिंदगी || कभी गीता कि पाठ , तो कभी कुरान कि आयात है | एक कारवाँ सपनों का बागबाँ ,तो कभी माघी कि नैया और पतवार है ये जिंदगी || कभी काटो का दामन कभी जश्ने बहार है | शांति कि वीणा ,तो कभी लहु कि ललकार एक आवाज़ है ये जिंदगी || कभी ममता कि छाव कहीं ,तो कभी करुणा कि तस्वीर है आने वाले जीवन कि ,एक अनुभवों कि गीत है ये जिंदगी ||
    अगर ये आपने लिखा हैं वाकई बेहद खुबसूरत हैं...शब्द नही मिल रहे तारीफ के लिए.....!!!!
    Dimple

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  2. चिर नही बाबा चीर चीर.....समझ मे आया??

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