तुम तुम हो गयी,
मैं मय हो गया ।।
कभी अधरायी सी ,
मोहब्बत स्वर हो गयी ।।
तुम तुम हो ...…....
यकीन फ़िर,
आज पत्थर हो गया ।।
उम्मीद सारी,
ओझल ओस हो गयी ।।
अलसायी सी प्यास,
जख्म हो गयी ।।
नासूर सी तलब ,
बेखबर हो गयी ।।
तुम तुम हो .....
"श्री"
कभी सपनों का महल ,तो कभी आंसुओं की फरियाद है | कभी रेत की ढेर सी खामोश ,तो कभी पेड की छाँव है ये जिंदगी || कभी गीता की पाठ ,तो कभी कुरान की आयात है | एक कारवाँ सपनों का बागबाँ ,तो कभी माझी की नैया और पतवार है ये जिंदगी || कभी काँटों का दामन , कभी जश्ने बहार है| शांति की वीणा ,तो कभी लहू की ललकार एक आवाज़ है ये जिंदगी || कभी ममता की छाँव कहीं ,तो कभी करुणा की तस्वीर है | आने वाले जीवन की, अनुभवों की गीत है ये जिंदगी || -श्रीकुमार गुप्ता
Greetings from the UK.
ReplyDeleteThank you. Love love, Andrew. Bye.