यह कविता पारिवारिक लोक लाज को बचाने गृह स्वामिनी के जीवन से उद्धृत वो बीजक है, जिसका संपादक यह समाज है । गृह स्वामिनी अंतः मन में अक्सर ये सार लिए बैठी है । की मैं अपने मां बाप की बेटी हूं , जिसको समाज में केवल समनार्थ सूचक शब्द बनाकर रखा है । अपने मां बाबा की बेटी जो वक्त के साथ पराई लगती है। बेटियां जब बड़ी होती है , और उनकी जब शादी हो जाती है । पति के सात वचन से संग्रहित वचनों के साथ एक और वचन का निर्वहन करती है । जो वह शादी पर नही लेती । की वह कभी दूसरी शादी नही करेगी । चाहे उसका पति उसको ना ही अपना मान रहा, ये अपना मानना मतलब सखा मानना। पति और पत्नी एक दूजे को अपना वचन निर्वाहक के रूप में अपनाती है । जिनको वो साथ फेरे के वक्त लेती हैं । खैर आठवां वचन जो वह सात वचन के साथ लेती है । वो है आप ससुराल में ही अपने पति के साथ ही खुश रहोगी । चाहे उसका पति आपको सहृदय प्रेम से अपना न माने । और चाहे उसका पति उसको अपना न कहे। चाहे सामाजिक दिखावे के लिए शादी हुई हो । भारतीय समाज में दिखावे के लिए भी शादी की जाती है , कभी समाज को दिखाना हो की लड़के की आखिर शादी हो गई ही गई । क्यों न लड़का मंद बुद्धि , विकृत , शारीरिक दुर्बलता, के साथ ही क्यों न जन्मा हो । वह इस समाज की दुश्मन अनंत सार , उस अष्ट वचन धारी नारी के आगामी जीवन का सार हूं जिसने न जानते हुए की मेरी शादी किस जाहिल, मंद बुद्धि , विकृत , शारीरिक दुर्बलता, के साथ जन्मे इस विकृत व्यक्तित्व के साथ अपना आजीवन जीने के लिए वो आठवां वचन हूं । जिसकी साक्षी अग्नि को साक्षी मान कर लेती है । की मैं कभी दूसरी शादी नही करूंगी । चाहे मुझे प्रताणित किया जाय, चाहे खुश न रखा चाहे। चाहे केवल पैसे के लिए किया जाय। कभी दिखावों के लिए जीया जाता है। क्योंकि मेरी छोटी बहने हैं।भाई हैं । हम कभी दूजी शादी नहीं करेंगे। क्योंकि अगर मैंने की तो सब करेंगे। मैं करूंगी तो छोटे भी करेंगे । इस विष के साथ इस जीवन को अपना लेती है की जिंदगी में केवल अपने परिवार को नहीं तोड़ना है। कभी तलाक नहीं लूंगी । चाहे पति न अपना, पारिवारिक रिश्ते लिए साथ दो चार फोटो के लिए शादी करते है । और पत्नी एक अनन्त जेल में कैद वो कैदी बन जाती है । जो केवल अपने नए घर में एक गेट कीपर बन कर रह जाती है । शायद यही जिंदगानी है ।
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