Thursday, April 1, 2010

मोहतरमा

वो काँटों का  दर्द भी ना सह सके .......................

है  तवज्जुब  बड़ी  बेशर्म वो हया ,
जो परवानो से रुकसत ना हो सके |

एक अनजूबन थी मोहब्बत मेरी ,
और वो खुद से भी प्यार ना कर सके |

हम वफा कि तराजू पे बैठे जनम ,
वो पल का हिसाब भी ना दे सके |

जब भी लाल होती शाम जळते हर पल को हम ,
वो एक चिंगारी से आग भी ना बन सके |

तेरी अदा पे है जलते और मरते है हम,
वो  काँटों  का दर्द भी ना सह सके |

2 comments:

  1. just give ur views its my best i ever write

    ReplyDelete
  2. Don't say best...ho sakata hain aap is se kahin jyada kavita aaj ya kal likh likhen...agar ise best manoge to kabhi is se jyada achha nhi likh paoge....keep growing...रुकना विनाश का सूचक हैं...ठहराव मृत्यु हैं....take care

    ReplyDelete