आज तुम अपने देश में हो,
पर लगता थोड़े द्वेष में हो,
अफजल को तिलक लगाते हो,
अपने घर में आग लगाते हो ।।
जब कतरा कतरा भू में,
वो इंसान पुकारता है,
तुम भारत माँ की छाती पे,
पाकिस्तान बुलाते हो ।।
जिस देश में सारे सपने देख,
तुम सपेरे बन जाते हो,
और गैर देश के झंडे पर,
अपना अधिकार जताते हो।।
कभी सोंचों इस धरती में,
क्या बिन खाए एक दिन सोये,
माँ भारत का अपमान किया,
क्या अपनी माँ को पूजोगे ।।
काश की हृदय तुम्हारा भी,
देश के शहीदों पर रोए,
काश की अफज़ल की गोली,
तेरे अपनों से गुजरे।।
शायद की कलम तुमने,
दूजी ऒर चलायी है,
जिस थाली में खाना खाया,
थाली को ठोकर मारी है ।।
तुम अफज़ल हर घर पैदा करो,
हम हर उस घर को तोड़ेंगे ,
चाहे इस बलिदान में ,
कुछ अपनों को खो देंगे ।।
एक दिन फिर ऐसा आएगा ,
तुम अपनों को जानोगे ,
देश के उन गद्दारों को ,
अफज़ल के संग पाओगे ।।
भारत भूमि अपनी है ,
तुम इसकी संतान हो ,
शायद फिर आज तुम ,
इस बात से फिर अनजान हो ।।
इस बात से फिर अनजान हो ।।
"श्री"
Poem written for JNU University Students Delhi
शर्मनाक है जो भी हो रह है देश के विश्वविद्यालयों में ...
ReplyDelete