शायद कभी .............
शायद कभी वो पल ना आता,
जीवन का वो कल ना आता,
रुला रुला मरहम न भरता ,
दिल मे मेरे गम ना भरता ।
जिंदगी जन्नत वो करके ,
जिंदगी से आ लडी थी,
मुझ को तो लगता था जैसे ,
जन्मों कि बिछ्डी मिली थी |
बातों मे खोया हुआ ,
लगता था कोई अपनी मिली थी,
लगता था जादुई छडी थी ,
दिल मे मेरी आ पडी थी |
आँसुओं कि वो लडी थी ,
जाने कैसी वो घडी थी,
बात करना भूल कर वो,
देख कर भी चुप खडी थी |
दिल मे तो गम का था साया,
आंखो मे शर्मिंदगी थी,
लगता था मेरे लिए वो,
अंबर तल पर आ खडी थी |
पल दो पल कि खुशियाँ देकर,
जाने क्यो गुमशुम खडी थी,
जिंदगी जन्नत वो करके ,
जिंदगी से आ लडी थी |
भूल कर रिश्ते वो नाते,
पत्थरों सी वो खडी थी,
जाने कैसी वो घडी थी ,
रुठ कर बिछ्डी चली थी ।
"श्री"